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लेखनी कहानी -14-Jul-2022 वो अब वहां नहीं रहती है

# कहानी प्रतियोगिता हेतु 


वो अब वहां नहीं रहती है 

सुमन के घर में सब औरतें इकट्ठी हो गई थीं । सब औरतें आक्रोशित थीं । और हों भी क्यों नहीं ? आखिर अपने घर परिवार को बचाने की आवश्यकता थी । समाज का नैतिक अवमूल्यन होने से रोकने की जिम्मेदारी भी तो उन्हीं की थी । कितना भार ढोतीं हैं ये औरतें भी ? और सारी उमर ढोतीं ही रहतीं हैं । कोल्हू के बैल की तरह लगातार । कोई विश्राम नहीं । और सबका ठेका भी इन्होंने ही ले रखा है । 


सुमन अपना सुबह का सारा काम छोड़कर उन सबके बीच आ गई। सब औरतें एक बार खामोश हो गई । बबीता जो थोड़ी वाचाल थी , बोली 


"दी, आपको तो पता ही है । जबसे हमारे मौहल्ले में "वह" आई है , मनचलों की भीड़ इकट्ठी होकर दिन भर सड़कों पर हंसी ठठ्ठा करती रहती है । लोग दिन दहाड़े दारू पीकर अनाप-शनाप बकते रहते हैं । आने जाने वाली हर महिला पर फब्तियां कसते रहते हैं । लाल लाल डोरे वाली गंदी निगाहों से घूरते रहते हैं । वहां से निकलना दूभर हो गया है । देर रात तक वहां पर जमघट लगा रहता है "उसके" मकान के नीचे । जवान लोगों को तो छोड़ो , बूढ़े भी अब तो अपनी सफेद मूंछों पर खिजाब लगाकर ताव देते हैं । उनकी आंखें भी नशे में डूबी रहती हैं । अगर "वो" यहां रही तो एक दिन हमारे सारे मर्द उसके मकान के नीचे भांगड़ा करते हुए मिल जाएंगे" । 


शोभा अपने हाथ नचाकर बोली "दी, पहले तो मौहल्ले के सारे बच्चे उस सड़क पर दिन भर क्रिकेट खेलते थे । अब जबसे "वह" आई है तबसे उनका वहां पर खेलना ही बंद हो गया है । अब दिन भर घर में ही पड़े रहते हैं ये बच्चे । बच्चे भी तंग और हम मांएं भी तंग । कहां तक मारें बच्चों को ? अब कोई न कोई तो इलाज करना ही होगा नहीं तो देख देखकर ये बच्चे ही बिगड़ जाएंगे" । 


और कोई कुछ बोलती इससे पहले ही सुमन कहने लगी "मुझे सब पता है , मैं भी एकदम अनजान नहीं हूं । जबसे "वह" आई है हमारे मौहल्ले में , हम सबकी शांति छिन गई है । एक अनजाना सा डर लगा रहता है । इसलिए मैं तो कभी कभी खिड़की से उधर देख भी लेती हूं कि कहीं वहां पर मेरे आदित्य के पापा तो नहीं हैं ? मर्दों का क्या भरोसा ? जहां भी कोई "गुलाब" खिलता दिखे, भंवरे की तरह वहां पर मंडराने लगते हैं । मौहल्ले की बदनामी हो रही है सो अलग । हमारी बहन बेटियां भी तो हैं । क्या असर पड़ेगा उन पर ? कल को वो भी तो बिगड़ सकतीं हैं ? ऐसा करते हैं कि सभी औरतें चलतीं हैं "उसके" पास और बात करके आतीं हैं" । 


सबने एक स्वर में यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया । सब औरतें सुमन के साथ चल दीं और "उसके" मकान पर पहुंच गई । घंटी बजाने पर एक औरत बड़ी शालीनता के साथ उनको लिवा ले गई और उनको हॉल में बैठा दिया । 


थोड़ी देर बाद "वह" आई । सचमुच सुंदर थी वह । चेहरा खिला हुआ । आंखों से जैसे जीवन की किरणें निकल रही हो । होंठों से जैसे बहार चल रही हो । बालों से जैसे महक उड़ रही हो । गुलाबी साड़ी में "वह" सादगी की मूरत लग रही थी । चेहरे पर सौम्यता के भाव थे । उसे इस रूप में देखकर सारी औरतें एक बारगी भौंचक रह गई। 


खामोशी तोड़ते हुए उसने पूछा "कहिए , कैसे आना हुआ आप लोगों का" ? 


फिर से खामोशी छा गई । कोई कुछ नहीं बोली । फिर सुमन ने कहा "जी, दर असल बात यह है कि आप जबसे यहां आईं हैं , मौहल्ले में अशांति छा गई है । मर्दों का घरों से निकलना मुश्किल हो गया है । बच्चे बाहर खेलने नहीं जा रहे हैं। मनचलों और ठरकी लोगों का यहां जमावड़ा लगा रहता है । बहन बेटियां बाहर जाने से डरती हैं । इसलिए यह बेहतर होगा कि आप कहीं और चली जाओ' । सीधे सपाट शब्दों में वह कह गई। 


हॉल में थोड़ी देर शांति छा गई। मौन तोड़ते हुए "वह" बोली "तुम्हें मुझसे डर लगता है या अपने मर्दों के लोलुप मन से" ? 


प्रश्न इंद्र के वज्र की तरह बहुत ही घातक था । अंदर तक चोटिल कर गया । जवाब देते नहीं बना । फिर सुमन ने कहा 


"बात को घुमाओ मत । अगर सामने मिठाई होगी तो बच्चे का मन तो डोलेगा ही । जब विश्वामित्र जैसे ज्ञानी मानी ऋषि का मन ही डोल गया था तो ये तो साधारण इंसान हैं । पेट्रोल पास में होगा तो आग लगने का डर तो हरदम ही बना रहेगा ना । इसलिए बुद्धिमानी यही है कि पेट्रोल को वहां से हटा दिया जाए " । सुमन के स्वर में दृढ़ता थी । 


"उसके" होंठों पर एक मुस्कान तैर गई । बहुत ही मीठे स्वर में वह बोली "बहन , बुरा मत मानना । मुझे तो लगता है कि आप लोगों को खुद पर भरोसा नहीं है" । 


सब औरतें एकदम से चौंकी । कुछ समझ नहीं आया कि वह कहना क्या चाहती है । एक औरत बोली "थोड़ा खुलकर कहो कहना क्या चाहती हो" ? 


"वह" बोली । "तुमको इसी बात का तो डर है कि तुम लोगों के पति यहां पर आ सकते हैं । इसका मतलब यह हुआ कि यदि तुम्हारे रूप , प्रेम की पकड़ इतनी कमजोर है कि तुम्हारे पति उसे तोड़कर इधर आ जाएं तो इसमें मेरा क्या दोष ? मैं तो किसी को बुलाने नहीं जाती ? आप लोगों का आकर्षण खत्म हो गया है और आपके पतियों को अब आप में 'आनंद' महसूस नहीं होता है तो यह आपके सोचने का विषय है , मेरा नहीं । इसलिए मुझे यहां से हटाने के बजाय खुद पर ध्यान दो और अपनी सुन्दरता रूपी तलवार पर सान चढ़ाओ । प्रेम रूपी रस्सी को मजबूत करो जिससे उसे तुड़ाकर तुम्हारे पति इधर हरियाली देखकर मुंह मारने नहीं आ पायें " ? उसके होंठों पर एक विजयी मुस्कान खेल रही थी । 


थोड़ी देर शांति रहने के बाद सुमन बोली "बहन , आप और हम में बहुत फर्क है । कुछ कुछ वैसा ही जैसा एक अखाड़े में एक सधे , मंझे हुए पहलवान और एक अनाड़ी पहलवान में होता है । आप एक मंझे हुए पहलवान की तरह हो । आपको पता है कि मर्दों को किस तरह वश में किया जाता है। आप चौबीसों घंटे इसी योजना पर काम करती हो । मगर हम लोगों के पास पूरे परिवार की जिम्मेदारी होती है । सास ससुर का खयाल रखना होता है । बच्चों पर ध्यान देना पड़ता है । पति की ख्वाहिशें पूरी करनी पड़ती हैं । घर को संभालना पड़ता है । फिर इतना समय कहां मिलता है कि हम हमेशा ही बन ठन कर घर में रहें । पति के आते ही उस पर नशीले नैनों से आक्रमण कर दें । अपनी जुल्फों में उन्हें बांध लें । एक मुस्कान से उन्हें चित्त कर दें ? जबकि तुम इसी काम की एक्सपर्ट हो । तुमने तो इसका भरपूर प्रशिक्षण लिया है । हमने तो ऐसा कोई प्रशिक्षण भी नहीं लिया है । इसलिए बातों में मत भटकाओ और जल्दी ही यह मौहल्ला छोड़ दो " । सुमन ने दो टूक शब्दों में कह दिया। 


"उसकी" इच्छा तो बहुत हो रही थी कि वह बहुत कुछ कहे , लेकिन उसने सोचा कि जब इनको अपने प्रेम अपने सौंदर्य और अपने पति के समर्पण पर विश्वास ही नहीं है तो फिर फिजूल के वाद विवाद में फंसने से भी क्या फायदा । अतः उसने उन सबको आश्वस्त कर दिया कि वह जल्दी ही वहां से चली जाएगी । 


वो अब  वहां नहीं रहती है

श्री हरि 


 


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7 Comments

नंदिता राय

14-Jul-2022 10:06 PM

बहुत खूब

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Chudhary

14-Jul-2022 09:55 PM

Nice

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Rahman

14-Jul-2022 09:21 PM

👍👍

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